Wednesday, October 19, 2011

तुम दीया और मै तुम्हारी बाती







तुम क्या हो मेरे लिये

सच यह प्रश्न मैने बार बार हर बार खुद से पुछ 
हर बार प्रश्नों ने हमें नव उत्तर  दिया
मन तरंग में छागये 

तुम मेरी जिन्दगी का सफर ही  नहीं 
तुम मेरे  जीवन की अद्भुत कहानी हो 
जिसे मै बार बार
 हर बार नए सिरे से पड़ना चाहती  हूँ 
खुद को उसकी  नायका 
बन तुम्हारे साथ चलना चाहती  हूँ 
तुम्हारे साथ हर मंजील
 ख्वाब सजाना चाहती हूँ  
चाहे चांदनी रात हो 
यह रेगिस्तान में तपती धुप 
तुम्हारे पथ पर चलना चाहती  हूँ 
जानती हूँ 
 तुम ही अकेले इस सदी के महा नयक हो 
एकदिन जीत लोगे इस जहाँ  को 
मै तुम्हारे साथ खुद को जितना चाहती हूँ 
तुम्हें पता है 
नाही अब  हमें किसी   ताप से भय ,
नाही अब समय के शाप से भ्रम ,
आज मन कहता की तुम्ही अनुराग मेरे हो 
आज आत्मा कहती है   तुम मेरे लिए हो बस मेरे  लिये हो  ।
तुम्ही मेरे मान हो
तुम्ही अभिमान हो रक्षक
 तुम्ही  मेरे जीवन के पथ साथी 
तुम दीया
और मै तुम्हारी बाती  
 

2 comments:

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

क्या बात
बहुत सुंदर

Anju (Anu) Chaudhary said...

waha bahut khub
kuch man kii bate....jo man se likhi gayi hai