Wednesday, June 16, 2010

बड़ी ही भ्रमित बातो का सार है कि प्रेम है क्या ?



"प्रेम की कविता पढ़
खुद वो प्रेमी कहलाये
कितना मूढ़ मानव जीवन
प्रेम से वंचित रह जाये"


बड़ी ही भ्रमित बातो का सार है कि प्रेम है क्या ?



प्रेम शब्दकोष नहीं कि हमने कह दिया कि तुमसे प्रेम करते है! प्रेम अभिव्यक्ति है, प्रेम प्रेरणा है ,प्रेम जीवन को जानने की सच्ची साधना है ! यदि किसी से कहते हैं कि हम तुमसे प्रेम करते हैं तो क्या वाकई में हम प्रेम करते हैं ? सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि तुम्हारा प्रेम है क्या?
क्या प्रेम करते हैं?
क्यों प्रेम करते हैं?
किससे प्रेम करते हैं?
कैसे प्रेम करते हैं?
अन्त प्रश्नों कि श्रंखला पर यदि हमने जान लिया तो हमने मान लिया कि हम प्रेम करते है ! यही प्रश्न और उत्तर में पड़कर क्या कभी प्रेम हुआ है ? क्या कभी जाना है कि प्रेम कभी मांगने देने से मिलता है?
बड़ा कठिन है यह जानना कि प्रेम क्या है और कौन प्रेमी है? सच तो यह है कि



"प्रेम जागृति है
प्रेम श्रद्धा और विश्वास है
प्रेम साधना और भक्ति है"


प्रेम जीवन कि आराधना


प्रेम जीवन जीने कि सच्ची कला है




सारा जीवन हम प्रेम प्रेम चिल्लाते रहते है! हम कहते हैं कि हम माँ, पिता ,पति , पत्नी, प्रेमी, प्रेमिका और बच्चों से प्रेम करते हैं! एक प्रेम तो शायद हम जनम जनम से करते हैं फिर भी हमें तृप्ति नहीं मिलती क्यों? क्योंकि हम प्रेम से दूर हैं, आत्मिक सुख से दूर हैं! यदि पति अपनी पत्नी से प्रेम करता है तो वह दूसरी औरतों से सारे सम्बन्ध क्यों बनाता है? क्योंकि उसका प्रेम अपनी पत्नी तथा दूसरी औरतों से केवल शारीरिक होता है और उसके शरीर से होता है! प्रेम तो आत्मा की जागृत अवस्था है ! जो आत्मा से शरीर तक tatha

प्रेम तो जीवन का सार है
प्रेम मांगने से नहीं मिलता इसलिए प्रेम की मांग करना प्रेम के लिए झूठा मायाजाल है
प्रेम तो दिल से मिलता है यह शब्दकोष नहीं यह भाव है
"आई लव यू" कहने मात्र से प्रेम नहीं होता , यह तो मांग है ,एक उम्मीद है, अपेक्षा तथा अनगिनत स्वार्थ सपनों से जुड़ा शब्दकोष है सच पूछो तो हम जिसे प्रेम कहते है क्या वह प्रेम है या कुछ और ? यदि तर्क पर सोचा जाये तो किसी वस्तु की चाह या सेक्स भी हो सकता है और लालच भी हो सकता है या कह सकते है अकेलेपन को भरने का एक माध्यम या यह भी हो सकता है की दूसरों पर अपना अस्तित्व जताना! पर क्या यह प्रेम है?



"प्रेम प्रवाह है
प्रेम विवशता नहीं
प्रेम भाव है
प्रेम तर्क नहीं
प्रेम जीवन की
वेदनाओं से परे है
प्रेम तो कोमल भावनाओ
की मौन अभिव्यक्ति है"



प्रेम की शक्ति असीमित है यह इंसान के अन्दर मानवीय भावना जगाता है तथा उसे आत्मिक रूप से बदल डालता है कृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम सर्वाधिक अद्भुत है उसके प्रीत की स्थाई भाव भक्ति है और वो भक्ति प्रेम एकांगी था उसके भक्ति में मधुर भाव थे वासना नहीं उसका प्रेम दिव्या प्रेम माधुर्य बोलता है उसके प्रेम शब्द की महिमा कहते हैं प्रेम का मतलब रब होता है!

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